देश में इस साल धान के उत्पादन में हो सकती है भारी कमी, उत्पादन 50 लाख टन कम होने की संभावना

देश में खरीफ की फसल का सीजन चल रहा है। बस कुछ ही दिनों बाद देश के कई हिस्सों में खरीफ की नई फसलें मंडियों में आने लगेंगी। लेकिन इस दौरान कई राज्यों में जरुरत से अधिक बरसात और भीषण सूखे की वजह से धान के उत्पादन में भारी कमी होने की संभावना है। साल 2017 के बाद यह पहली बार होगा जब धान के उत्पादन में क़मी देखी जाएगी। धान भारत की एक प्रमुख फसल है। प्रमुख फसल होने के कारण देश के एक बहुत बड़े क्षेत्र में धान की खेती की जाती है। धान की खेती मुख्यतः छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, असम, बिहार, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखण्ड और ओडिशा इत्यादि राज्यों में की जाती है। लेकिन मौसम की मार की वजह से इन राज्यों में उतना उत्पादन नहीं हो पायेगा जितने उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही थी।


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सरकार ने अपने आंकड़ों में बताया है कि इस साल मौसम की मार की वजह से धान के उत्पादन में लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है, जोकि धान के रकबे में होने वाले उत्पादन में एक बड़ी गिरावट है। इस साल धान के रकबे में भी भारी कमी आई है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले साल धान का कुल रकबा लगभग 403.58 लाख हेक्टेयर था, जो इस साल घटकर मात्र 325.39 लाख हेक्टेयर बचा है। मतलब बहुत सारे किसानों ने सूखे को देखते हुए इस साल धान की बुवाई नहीं की है। इसके साथ ही खेतों को या तो खाली छोड़ दिया है या धान की जगह कोई अन्य फसल उगाई है जिसमें पानी की ज्यादा जरुरत न हो।


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कृषि मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट में जारी की गई रिपोर्ट में अंदेशा जताया है कि इस साल धान के उत्पादन में 60-70 एलएमटी उत्पादन की कमी का अनुमान है। लेकिन होने वाले घाटे को थोड़ा बहुत पाटा भी जा सकता है, क्योंकि बाद के दिनों में कुछ राज्यों में अच्छी वर्षा हुई है जिसकी वजह से किसानों ने खेतों में धान की बुवाई भी की है और साथ ही अच्छी वर्षा के कारण धान के उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है। अच्छी मानसून वर्षा के कारण उत्पादन का घाटा 40-50 एलएमटी तक सीमित रह सकता है। देश में धान के उत्पादन की मौजूदा परिस्थित को देखते हुए सरकार ने चावल के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया है, क्योंकि धान के सीमित उत्पादन के कारण भारत में चावल की कमी हो सकती है। इसको भांपते हुए सरकार ने कोशिशें शुरू कर दी हैं कि देश का चावल अब बाहर न जाने पाए। इसके पहले देश में खाद्यान्न की कमी को देखते हुए सरकार गेहूं पर पहले ही प्रतिबन्ध लगा चुकी है। इस साल गैर बासमती चावल के निर्यात में 11 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी, जिसके कारण बाजार में चावल के भाव में तेजी देखने को मिल सकती है। इसको लेकर भी सरकार चिंतित है। ये भी पढ़ें : असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड धान के कम उत्पादन के आंकलन की भनक लगते ही बाजार में चावल के भाव में तेजी दिखने लगी है। अगर पिछले कुछ महीनों का आंकलन करें तो चावल के दामों में लगातार वृद्धि देखी गई है, जिसको देखते हुए अब सरकार ने हाल ही में टुकड़ा चावल के निर्यात पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया है। साथ ही चावल के निर्यात पर सरकार ने फैसला किया है कि अब गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 फीसदी अतिरिक्त एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई जाएगी। सरकार का अनुमान है कि धान के उत्पादन में कमी के अनुमान के बीच इस तरह के निर्यात प्रतिबन्ध लगाने से देश का चावल बहार नहीं जाएगा और घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता बढ़ाई जा सकेगी। चावल के मामले में चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसके बावजूद इस साल कम बरसात के कारण भारत में धान की कमी होने का अंदेशा जताया जा रहा है। क्योंकि धान की बुवाई का क्षेत्र लगातार सिमटता चला जा रहा है। चावल के वैश्विक व्यापार में भारत लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदार है। भारत ने चावल के निर्यात के मामले में नया कीर्तिमान बनाते हुए साल 2021-22 में 2.12 करोड़ टन चावल का निर्यात किया था, जिसमें लगभग 20 प्रतिशत बासमती चावल था। भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत ने साल 2021-22 में दुनिया के 150 से अधिक देशों के लिए चावल निर्यात किया था। इस दौरान गैर-बासमती चावल से होने वाली कमाई लगभग 6.11 अरब डॉलर रही।

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भारत में मौसम की मार की वजह से धान के उत्पादन में कमी होना तय है, जिसका सीधा असर देश के लोगों पर और सरकार पर होने वाला है। इससे निपटने के लिए सरकार ने विभिन्न माध्यमों से तैयारियां शुरु कर दी है। जल्द ही इसका असर बाजार में दिखाई देगा। सरकार के इस निर्णय से चावल और धान की कीमतों में जल्द ही गिरावट देखने को मिलेगी।